Chandra Shekhar Azad Ki Jivani ( चंद्रशेखर आज़ाद की जीवनी )
बहुत बार ऐसे प्रश्न भी आ जाते जाते है या फिर आपको चंद्र शेखर आज़ाद पर लेख लिखने को भी मिल सकता है।
तो चलिए बिना टाइम वेस्ट किए आर्टिकल को शुरू करते हैं।
चंद्रशेखर आज़ाद
देश की आज़ादी में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले क्रांतिकारियों में चंद्रशेखर आज़ाद का नाम प्रमुख रूप से उल्लेखनीय है। इनका जन्म मध्य प्रदेश के भाबरा नामक गांव में हुआ था जो वर्तमान में अलीराजपुर जिले के अंतर्गत आता है। इनके बचपन का नाम चंद्रशेखर तिवारी था। इनके पिता सीताराम तिवारी और माता का नाम जगरानी देवी था। पिता सीताराम तिवारी अलीराजपुर रियासत में नौकरी करते थे। इनका पैतृक गांव बदरका, उन्नाव, उत्तर प्रदेश में था। परंतु अकाल के समय उनके परिवार ने बदरका से निकल कर कर भाबरा पलायन कर लिया था। अब क्योंकि भाबरा जिला आदिवासी बहुल इलाका था, इसलिए चंद्रशेखर आज़ाद का बचपन आदिवासियों के साथ बीता। खेल-खेल में इन्होंने तीर धनुष चलाना और अनेक अन्य देसी युद्ध संबंध कौशल सीख लिए थे।
प्रारंभिक जीवन – Chandra Shekhar Azad Jivani
चंद्रशेखर आज़ाद का बचपन ब्रिटिश शासन के अत्याचारों के बीच बीता। बचपन से ही आज़ाद ख़यालों के चंद्रशेखर ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ नाराज़ रहते थे। ये महात्मा गांधी के आदर्शों से काफी प्रभावित थे।
13 अप्रैल 1919 को घाटी जलियांवाला बाग नरसंहार कांड ने चंद्रशेखर आजाद को काफ़ी विचलित कर दिया था। इसलिए जब अगस्त 1920 में महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन चलाया तो 14-15 वर्ष की बेहद कम उम्र के चंद्रशेखर आज़ाद ने इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इस समय बनारस में रहकर पढ़ाई कर रहे थे। इस क्रांतिकारी आंदोलन में शामिल होने की वज़ह से अन्य छात्रों के साथ इन्हें भी ब्रिटिश हुकूमत ने गिरफ्तार कर लिया। इसी गिरफ्तारी के दौरान चंद्रशेखर ने अपना नाम आज़ाद, पिता का नाम स्वाधीनता और उन्होंने अपनी माता का नाम भारत माता बताया था। गिरफ्तारी के दौरान अंग्रेजों ने इन्हें अनेक प्रकार से यातनाएं दी, परंतु इसके बावजूद चंद्रशेखर आज़ाद ने हार नहीं मानी और बेहोश होने तक “भारत माता की जय” के नारे लगाते रहे। इस घटना के बाद चंद्रशेखर तिवारी चंद्रशेखर आज़ाद के नाम से पहचाने जाने लगे।
क्रांतिकारी आंदोलनों में प्रवेश
1922 में महात्मा गांधी पर असहयोग आंदोलन को स्थगित करने से चंद्रशेखर आज़ाद खुश नहीं थे। अब इनका झुकाव क्रांतिकारी गतिविधियों की तरफ बढ़ने लगा। इस तरह महज़ 15 साल की उम्र में चंद्रशेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल हो गए। अपने विचारों और कार्यों की वजह से जल्दी ही इन्होंने संगठन में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान बना लिया। इस तरह सशस्त्र आंदोलन के एक प्रमुख नेता के तौर पर चंद्रशेखर आज़ाद की कीर्ति देशभर में फैलने लगी।
अंग्रेजों के विरुद्ध हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का पहला तगड़ा प्रहार काकोरी कांड (वर्तमान नाम काकोरी ट्रेन एक्शन) था। काकोरी ट्रेन एक्शन एक ट्रेन डकैती थी, जो 9 अगस्त, 1925 को लखनऊ के पास काकोरी नामक गाँव में ब्रिटिश राज के ख़िलाफ़ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के क्रांतिकारियों द्वारा की गई थी। इसमें चंद्रशेखर आज़ाद ने भी संगठन के अन्य साथियों के साथ हिस्सा लिया था।
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हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन
चंद्रशेखर आज़ाद ने दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में भगत सिंह वह अन्य क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना की। 1928 में साइमन कमीशन के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान लाला लाजपत राय की मौत होने पर एसोसिएशन से जुड़े भगत सिंह, सुखदेव ,राजगुरु ने उनकी मौत का बदला लेने का फैसला किया। इन लोगों ने 17 दिसंबर, 1928 को लाहौर के पुलिस अधीक्षक जेपी सांडर्स के दफ्तर को घेर लिया और राजगुरु ने सांडर्स पर गोली चला दी, जिससे उसकी मौत हो गई। इसके अलावा चन्द्रशेखर आज़ाद ने 1929 में असेंबली बमबारी के बाद भगत सिंह और उनके सहयोगियों को भागने में भी मदद की।
अल्फ्रेड पार्क घटना और शहादत
क्रांतिकारी साथियों राजगुरु, भगतसिंह और सुखदेव को मिली फांसी की सज़ा को किसी तरह कम करने या उन्हें बचाने के मकसद से चंद्रशेखर आज़ाद इलाहाबाद गए। इस दौरान मुख्यमंत्री के कारण अंग्रेजों को अल्फ्रेड पार्क में उनकी मौजूदगी का पता चल गया। इसके बाद हज़ारों अंग्रेजी सैनिकों ने इन्हें चारों तरफ से घेर कर गोलीबारी शुरु कर दिया। इस लड़ाई में अपने आख़िरी सांस तक चंद्रशेखर आज़ाद ने बहादुरी से अंग्रेजों का मुकाबला किया। इसमें वह बुरी तरह घायल हो गए लेकिन किसी अंग्रेज की गोली से मरने के बजाय इन्होंने ख़ुद अपनी मौत चुनी। 27 फरवरी 1931 वह दिन था जब इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क (वर्तमान चंद्रशेखर आज़ाद पार्क) में अंग्रेज़ों से लड़ाई करते हुए चंद्रशेखर आज़ाद ने ख़ुद को गोली मार ली और देश के लिए शहीद हो गए। आज भी प्रयागराज के चंद्रशेखर आज़ाद पार्क में स्थित वह पेड़ त्याग, बहादुरी और बलिदान की अद्भुत मिसाल के तौर पर सम्मान से याद किया जाता है।
निष्कर्ष – Chandra Shekhar Azad Jivani
इस प्रकार शहीद चंद्रशेखर आजाद का जीवन भारत की आजादी के लिए की लड़ने वालों की अद्भुत वीरता और एडम में साहस का बेहतरीन उदाहरण है। इनकी देशभक्ति, बहादुरी, दृढ़ता, आत्मविश्वास, त्याग, समर्पण आज भी लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत का काम करते हैं।
आज़ाद की विरासत एक स्वतंत्र और संप्रभु भारत के निर्माण में अनगिनत व्यक्तियों द्वारा किए गए बलिदानों की याद दिलाती है, और इनका नाम हमेशा के लिए देश के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित हो गया है।
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